Radha Krishna Prana Mora
Song Name: Radha Krsna Prana Mora
Official Name: Sakhi Vrnde Vijanpti Song 1
(Prayers to the Gopis)
Author: Narottama Dasa Thakura
Book Name: Prarthana
Language: Bengali
Song Name: Radha Krsna Prana Mora
Official Name: Sakhi Vrnde Vijanpti Song 1
(Prayers to the Gopis)
Author: Narottama Dasa Thakura
Book Name: Prarthana
Language: Bengali
rādhā-kṛṣṇa prāṇa mora yugala-kiśora
jīvane maraṇe gati āra nāhi mora (1)
kālindīra kūle keli-kadambera vana
ratana-vedīra upara basāba du’jana (2)
śyāma-gaurī-aṅge diba (cūyā) candanera gandha
cāmara ḍhulāba kabe heri mukha-candra (3)
gāṅthiyā mālatīr mālā diba doṅhāra gale
adhare tuliyā diba karpūra-tāmbūle (4)
lalitā viśākhā-ādi jata sakhī-vṛnda
ājñāya kariba sevā caraṇāravinda (5)
śrī-kṛṣṇa-caitanya-prabhur dāser anudāsa
sevā abhilāṣa kare narottama-dāsa (6)
The youthful Divine Couple Śrī Śrī Rādhā and Krşņa are my life and soul. In life or death I have no other refuge but Them.
In a forest of small kadamba trees on the bank of the Yamunā, I will seat the Divine Couple on a throne made of brilliant jewels.
I will anoint Their dark and fair forms with sandalwood paste scented with perfume, and I will fan Them with a camara whisk. O, when will I behold Their moonlike faces?
After stringing together garlands of mālatī flowers, I will place them around Their necks, and I will offer tāmbūla scented with cam- phor to Their lotus mouths.
With the permission of the sakhīs, headed by Lalitā and Viśākhā, I will serve the lotus feet of Rādhā and Krşņa.
Narottama dāsa, the servant of the servant of Śrī Krsna Caitanya Mahāprabhu, longs for this service to the Divine Couple.
রাধা-কৃষ্ণ প্রাণ মোর যুগল-কিশোর
জীবনে মরণে গতি আর নাহি মোর (১)
কালিন্দীর কূলে কেলি-কদম্বের বন
রতন-বেদীর উপর বসাব দু’জন (২)
শ্যাম-গৌরী-অঙ্গে দিব (চূয়া) চন্দনের গন্ধ
চামর ঢুলাব কবে হেরি মুখ-চন্দ্র (৩)
গাথিয়া মালতীর মালা দিব দোহার গলে
অধরে তুলিয়া দিব কর্পূর-তাম্বূলে (৪)
ললিতা বিশাখা-আদি যত সখী-বৃন্দ
আজ্ঞায় করিব সেবা চরণারবিন্দ (৫)
শ্রী-কৃষ্ণ-চৈতন্য-প্রভুর দাসের অনুদাস
সেবা অভিলাষ করে নরোত্তম-দাস (৬)
राधा-कृष्ण प्राण मोर
सखी-वृंदे विज्ञप्ति – गोपियों के प्रति प्रार्थना
राधा-कृष्ण प्राण मोर युगल-किशोर ।
जीवने मरणे गति आर नाहि मोर ॥ १ ॥
कालिन्दीर कूले केलि-कदम्बेर वन ।
रतन-वेदीर ऊपर बसाब दु’जन ॥ २ ॥
श्यामगौरी – अङ्गे दिब चन्दनेर गन्ध ।
चामर दुलाब कबे हेरिबो मुखचन्द्र ॥ ३ ॥
गाँथिया मालतीर माला दिबो दोहार गले ।
अधरे तुलिया दि’ब कर्पूर-ताम्बूले ॥४॥
ललिता विशाखा आदि जत सखीवृन्द ।
आज्ञाय करिबो सेवा चरणारविन्द ॥५ ॥
श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभुर दासेर अनुदास ।
सेवा अभिलाष करे नरोत्तमदास ॥६ ॥
युगलकिशोर श्री श्री राधा कृष्ण ही मेरे प्राण हैं। जीवन-मरण में उनके अतिरिक्त मेरी अन्य कोई गति नहीं है।
कालिन्दी (यमुना) के तटपर कदम्ब के वृक्षों के वन में, मैं इस युगलजोड़ी को रत्नों के सिंहासन पर विराजमान करूँगा।
मैं उनके श्याम तथा गौर अंगों पर चन्दन का लेप करूँगा, और कब उनका मुखचंद्र निहारते हुए चामर दुलाऊँगा।
मालती पुष्पों की माला गूँथकर दोनों के गलों में पहनाऊँगा और कर्पूर से सुगंधित ताम्बुल उनके मुखकमल में अर्पण करूँगा।
ललिता और विशाखा के नेतृत्वगत सभी सखियों की आज्ञा से मैं श्रीश्रीराधा-कृष्ण के श्री चरणों की सेवा करूंगा।
श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के दासों के अनुदास श्रील नरोत्तमदास ठाकुर दिव्य युगलकिशोर की सेवा-अभिलाषा करते हैं।
राधा-कृष्ण प्राण मोर
सखी-वृंदे विज्ञप्ति – गोपींच्या प्रति प्रार्थना
राधा-कृष्ण प्राण मोर युगल-किशोर ।
जीवने मरणे गति आर नाहि मोर ॥ १ ॥
कालिन्दीर कूले केलि-कदम्बेर वन ।
रतन-वेदीर ऊपर बसाब दु’जन ॥ २ ॥
श्यामगौरी – अङ्गे दिब चन्दनेर गन्ध ।
चामर दुलाब कबे हेरिबो मुखचन्द्र ॥ ३ ॥
गाँथिया मालतीर माला दिबो दोहार गले ।
अधरे तुलिया दि’ब कर्पूर-ताम्बूले ॥४॥
ललिता विशाखा आदि जत सखीवृन्द ।
आज्ञाय करिबो सेवा चरणारविन्द ॥५ ॥
श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभुर दासेर अनुदास ।
सेवा अभिलाष करे नरोत्तमदास ॥६ ॥
१. युगलकिशोर श्री राधाकृष्ण हे माझे प्राणस्वरूप आहेत. त्यांच्याविना माझ्या जीवनात अन्य कोणतीच गती (आश्रय) नाही.
२. कालिंदीच्या किनारी स्थित कदंबाच्या वनात आपणा दोघांसाठी मी रत्नजडित सिंहासन घडवून त्यावर तुम्हाला विराजमान करीन..
३. आपल्या श्यामवर्णीय शरीरावर चंदनाचा लेप लावीन; मोरपंखाने वारा घालीत केव्हा आपल्या सुंदर मुखकमलाचे मी दर्शन घेईन ?
४. सुंदर मालती फुलांच्या माळा बनवून मी भगवंतांना अर्पण करीन आणि त्यांच्या अधरी कर्पूरयुक्त सुगंधित तांबूल अर्पण करीन.
५. ललिता, विशाखादि सखींच्या निकट उभे राहून त्यांच्या आज्ञांनुसार मी श्रीचरणकमळांची सेवा करीन.
६. नरोत्तम दास ठाकूर, या भावनेत श्रीचैतन्य महाप्रभूच्या दासांच्या, दासानुदासांच्या सेवेची अभिलाषा करतात.
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