Kusumita Vrindavane Nacata Sikhi Gane

Song Name: Kusumita Vrndavane Nacata Sikhi Gane
Official Name: Swabhista Lalasa Song 6
Author: Narottama Dasa Thakura
Book Name: Prarthana
Language: Bengali

kusumita vṛndāvane, nācata śikhi-gaṇe
pika-kula bhramara jhaṅkāre
priya-sahacarī saṅge, gāiyā jāibe raṅge
manohara nikuñja kuṭīre (1)

hari hari manoratha phalibe āmāre
dūṅhūka manthara gati, kautuke heraba ati,
aṅge bhori pulaka antare (2)

caudike sakhīra mājhe, rādhikāra iṅgite,
ciruṇī laiyā kare kari
kuṭila kuntala saba, bikhāriyā āṅcaraba,
vanāiba vicitra kabarī (3)

mṛgamada malayaja, sab aṅge lepaba,
parāiba manohara hāra
candana-kumkume, tilaka banāiba,
heraba mukha-sudhākara (4)

nīla paṭṭāmbara, yatane parāiba,
pāye diba ratana-mañjīre
bhṛńgārera jale rāṅgā, caraṇa dhoyāiba
muchaba āpana cikure (5)

kusuma-kamala-dale, śeṣa bichāiba,
śayana karāba doṅhākāre
dhavala cāmara āni, mṛdu mṛdu bījaba,
śaramita dūṅhūka śarīre (6)

kanaka sampuṭa kari, karpūra tāmbūla bhari,
yogāiba doṅhāra vadane
adhara sudhā-rase, tāmbūla subāse,
bhakava adhika yatane (7)

śrī-guru karuṇā sindhu, lokanātha dīna bandhu,
mui-dine kare avadhāna
rādhā-kṛṣṇa, vṛndāvana, priya-narma-sakhī-gaṇa,
narottama māge ei dāna (8)

In Vṛndāvana, filled with blooming flowers, dancing peacocks and beautiful sounds of birds and bumblebees, my dear friends and I will go singing to the enchanting cottage in the forest.

O Lord Hari, when will this desire be fulfilled that my body will shiver due to great ecstasy as I watch the beautiful movements of Radha and Kṛṣṇa?

When Śrī Radhika, surrounded by Her sakhis, will give a hint, then I will take a comb in my hand and carefully comb Her beautiful curly locks in a wonderful style.

I will apply sandalwood paste and musk on Them and offer beautiful garlands. Then I will shyly gaze at Their moonlike faces as I apply Their tilaka made from sandalwood paste and kumkuma.

I will dress Rādhārāṇī with blue silken garments, and place golden anklets on Their lotus feet. I will wash Their lotus feet with water from a pot and dry Them with my own hair.

Arranging a bed beautifully decorated with lotus flowers I will request Them to lie down and I will fan Them slowly with a white camara.

I will take tambula made with camphor and betelnuts from a golden box and place them in Their lotus mouths, fragrant with betelnuts, and thus see Them happy.

O Lokanatha Gosvāmī, O my spiritual master, O ocean of mercy and friend of the poor. O master, please glance mercifully on me and bless me to have the service of Radha and Kṛṣṇa, Vṛndāvana Dhama and the dearmost sakhīs of Kṛṣṇa. These are the innermost desires of Narottama dāsa.

হরি হরি! কি মোর করম অতি মন্দ
ব্রজে রাধা-কৃষ্ণ-পদ   না ভজিনু তিল আধ
না বুঝিনু রাগের সম্বন্ধ (১)

স্বরূপ সনাতন রূপ  রঘুনাথ ভট্ট যুগ
ভূগর্ভ শ্রী-জীব লোকনাথ
ইঁহা সবার পাদ-পদ্ম  না সেবিনু তিল আধ
কিসে মোর পূরিবেক সাধ (২)

কৃষ্ণদাস কবিরাজ  রসিক ভকত মাঝ
যে রচিল চৈতন্য চরিত
গৌর গোবিন্দ লীলা  শুনিলে গলয়ে শিলা
না ডুবিনু তাহে মোর চিত (৩)

তাঁহার ভক্তের সঙ্গ  তাঁর সঙ্গে যাঁর সঙ্গ
তাঁর সঙ্গে নৈল কেনে বাস
কি মোর দুঃখের কথা  জনম গোঙাইনু বৃথা
ধিক ধিক নরোত্তম দাস (৪)

कुसुमित वृन्दावने, नाचत शिखिगणे। 
पिक-कुल, भ्रमर झाँकारे
प्रिय सहचरी सङ्गे, गाइया जाइबे रङ्गे,
मनोहर निकुञ्ज-कुटीरे ॥१॥ 

हरि हरि ! मनोरथ फलिबे आमारे।
 दूँहूक मन्थर गति, कौतुके हेरब अति,
अङ्ग भरि पुलक अन्तरे ॥२॥

चौदिके सखीर माझे, राधिकार इंगिते,
चिरूणी लइया कबे करि’।
कुटिल कुन्तल सब, बिखारिया आँचरब,
बनाइब विचित्र कबरी ॥३॥

मृगमद मलयज, सब अने लेपब,
पराइब मनोहर हार।
चन्दन -कुंकुमे, तिलक बनाइब,
हेरब मुख- सुधाकर ॥४॥ 

नील पटाम्बर, यतने पराइब,
पाये दिब रतन-मंजीरे।
भृंगारेर जले राङ्गा- चरण धोयाइब,
मुछब आपन चिकुरे ॥५॥

कुसुम-कमलदले, शेष बिछाइब,
शयन कराब दोंहाकारे।
धवल चामर आनि, मृदु मृदु वीजब,
शरमित ढूँहूक शरीरे ॥६॥

कनक सम्पुटे करि, कर्पूर ताम्बुल भरि,
योगाइब दोंहार वदने ।
अधर सुधा-रसे, ताम्बुल-सुबासे,
भोकव अधिक यतने ॥७॥

श्रीगुरु करुणासिन्धु, लोकनाथ दीनबन्धु, 
मुइ-दीने करे अवधान |
राधाकृष्ण, वृन्दावन, प्रिय नर्म-सखी-गण,
नरोत्तम मागे एइ दान ॥८॥

 

श्री वृन्दावन में, खिले हुए पुष्पों, नृत्य करते मयूरों, भ्रमरों की झंकार तथा पक्षियों के कलरव के मध्य मैं अपनी प्रिय सहचरियों के संग गायन करती हुई वन में स्थित मनोहर निकुञ्ज – कुटीर में जाऊँगी।

हे भगवान् हरि ! मेरा यह मनोरथ कब पूर्ण होगा जब श्री श्री राधा-कृष्ण की सुन्दर भाव-भंगिमाओं को मैं कौतुक हो निहारुँगी एवं मेरे अंग पुलकित हो उठेंगे।

निज सखियों से घिरी श्री राधिका जब इंगित करेंगी तब मैं अपने हाथ में कंघी लेकर सावधानीपूर्वक उनके घुँघराले केशों को विचित्र रीति से सँवारूँगी।

मैं उनके श्री अंगों को चन्दन एवं कस्तूरी से लेपित करूँगी तथा उनको सुन्दर फूलमाला अर्पित करूंगी। तत्पश्चात् श्रीश्री राधा-कृष्ण को चन्दन एवं कुंमकुम से निर्मित तिलक लगाते हुए, मैं उनके चन्द्रमुखों को लज्जापूर्वक निहारुँगी।

मैं, सावधानीपूर्वक, राधारानी को नीले रेशमी वस्त्रों से अलंकृत करूँगी तथा उनके चरणकमलों में रत्न जड़ित स्वर्ण निर्मित नूपुर पहनाऊँगी। मैं पात्र में रखे हुए जल से उनके चरणकमल प्रक्षालित करूँगी तथा उन्हें अपने केशों से पोंछकर सुखाऊँगी।

कमल-दल से सुशोभित सुन्दर शय्या बिछाकर, मैं उनसे शयन करने का निवेदन करूँगी। तब मैं उनके हेतु श्वेत चामर मृदु-मृदु दुलाऊँगी।

मैं एक छोटे-से-स्वर्ण निर्मित सन्दूक से कर्पूर एवं पुंगीफल (सुपारी) से बना सुगन्धित ताम्बूल उनके मुखारविन्द में अर्पित करूँगी, इस प्रकार उन्हें प्रसन्नचित्त देखूँगी।

हे मेरे गुरुदेव श्रील लोकनाथ गोस्वामी आप करुणासिन्धु एवं दीन-हीन जनों के मित्र हैं। हे मेरे स्वामी, कृपया इस दीन पर अपनी दया-दृष्टि डालें तथा इसे श्रीश्री राधा-कृष्ण, श्री वृन्दावन धाम, तथा श्री कृष्ण की अतिशय प्रिया सखियों की सेवा करने की कृपा प्रदान करें। श्रील नरोत्तमदास ठाकुर भिक्षा की याचना करते हैं।

कुसुमित वृन्दावने, नाचत शिखिगणे। 
पिक-कुल, भ्रमर झाँकारे
प्रिय सहचरी सङ्गे, गाइया जाइबे रङ्गे,
मनोहर निकुञ्ज-कुटीरे ॥१॥ 

हरि हरि ! मनोरथ फलिबे आमारे।
 दूँहूक मन्थर गति, कौतुके हेरब अति,
अङ्ग भरि पुलक अन्तरे ॥२॥

चौदिके सखीर माझे, राधिकार इंगिते,
चिरूणी लइया कबे करि’।
कुटिल कुन्तल सब, बिखारिया आँचरब,
बनाइब विचित्र कबरी ॥३॥

मृगमद मलयज, सब अने लेपब,
पराइब मनोहर हार।
चन्दन -कुंकुमे, तिलक बनाइब,
हेरब मुख- सुधाकर ॥४॥ 

नील पटाम्बर, यतने पराइब,
पाये दिब रतन-मंजीरे।
भृंगारेर जले राङ्गा- चरण धोयाइब,
मुछब आपन चिकुरे ॥५॥

कुसुम-कमलदले, शेष बिछाइब,
शयन कराब दोंहाकारे।
धवल चामर आनि, मृदु मृदु वीजब,
शरमित ढूँहूक शरीरे ॥६॥

कनक सम्पुटे करि, कर्पूर ताम्बुल भरि,
योगाइब दोंहार वदने ।
अधर सुधा-रसे, ताम्बुल-सुबासे,
भोकव अधिक यतने ॥७॥

श्रीगुरु करुणासिन्धु, लोकनाथ दीनबन्धु, 
मुइ-दीने करे अवधान |
राधाकृष्ण, वृन्दावन, प्रिय नर्म-सखी-गण,
नरोत्तम मागे एइ दान ॥८॥

१. वृंदावनातील नुकत्याच फळाफुलांनी बहरलेल्या वनामध्ये मोर नृत्य करीत आहेत, कोकिळा सुंदर स्वरात गात आहे. आणि मधमाशी गुंजन करीत आहे. मी इतर सहचारी सखींबरोबर आनंदाने नाचत-गात मनोहारी निकुंज कुटीराकडे वाटचाल करीत आहे.

२. ओह! आज माझ्या हृदयातील सर्वोच्च मनोरथ फळास येईल. राजेशाही थाटात मंदगतीने चालत येणाऱ्या दिव्य युगलांचे मी अतिशय कौतुकाने दर्शन करीन. विविध उंचवटीने भरलेले त्यांचे कोमल अवयव एखाद्या फुलाच्या कळीप्रमाणे भासत आहेत.

३. निज सखींनी घेरलेल्या श्रीराधिकेने तिच्या नेत्रकटाक्षाने केलेल्या खुणेची चाहुल लागताच केशरचना करण्यासाठी फणी घेऊन मी तिच्याजवळ जाईन, तिचे लांब, कुरळे केस विंचरेन आणि त्या केसांची निरनिराळ्या प्रकारे आकर्षक केशरचना करीन.

४. तिच्या विविध अवयवांवर मी कस्तुरी तसेच चंदनाचे लेपन करीन आणि तिच्या गळ्याभोवती मनोहारी हार घालीन. कुमकुम मिश्रित चंदनाच्या लेपनाद्वारे तिच्या ललाटावर मी सुंदर तिलक कोरून तिच्या सुंदर अमृत वितरित करणाऱ्या मुखमंडळाचे दर्शन घेईन.

५. तिच्या सुंदर विग्रहास मी अतिशय काळजीपूर्वक निळी रेशमी वस्त्रे घालीन आणि चरणकमळांवर रत्नजडित पैंजण बांधीन. कळशीतील पाण्याने तिचे लाल चरणकमळ स्वच्छ धुवून आणि नंतर माझ्या केसांनी त्यांना पुसून कोरडे करीन.

६. ताज्या फुलपाकळ्या विखरून मी एक सुंदर बिछाना तयार करीन. त्यावर त्या युगलांना विश्राम करण्याची विनंती करीन. सुंदर श्वेत चामराने वारा घालून त्यांच्या थकलेल्या अवयवांना मी आराम देईन.

७. कर्पूरगंधित तांबुलाने भरलेल्या रत्नजडित डब्यामधील तांबुल मी त्यांच्या मुखाजवळ धरीन. त्यानंतर त्या दोघांच्या
ओठांच्या स्पर्शाने आणखीच सुगंधित झालेल्या तांबुलाचे मी स्वतः अगदी ध्यानपूर्वक सेवन करीन.

८. हे गुरुदेव ! हे करुणासिंधू! हे दीनबंधू लोकनाथ गोस्वामी! आपल्या या पतित सेवकाचे अवधान करा. श्रीराधाकृष्ण, वृंदावन आणि प्रिय निजसखींचे दान देण्याची याचना नरोत्तम दास आपल्याकडे करीत आहे.

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