Karanga Kaupina Laiya

Song Name: Karanga Kaupina Laiya
Official Name: Sadhaka-dehocita Sri Vrindavana Vasa Lalasa Song 3
Author: Narottama Dasa Thakura
Book Name: Prarthana
Language: Bengali

karaṅga kaupīna laiyā, cheṅḍā kāṅthā gāya diyā
teyāgiyā sakala viṣaya
kṛṣṇe anurāga habe, vrajera nikuñje kabe,
jāiyā kariba nijālaya (1)

hari hari ! kabe mora haibe sudina
phala-mūla vṛndāvane, khāña dibā-avasāne,
bhramiba haiyā udāsīna (2)

śītala yamunā jale, snāna kari kutūhale,
premāveśe ānandita hañā
bāhura upara bāhu tuli, vṛndāvane kuli kuli,
kṛṣṇa bali beḍāba kāṅdiyā(3)

dekhiba saṅketa sthāna, juḍābe tāpita prāṇa,
premāveśe gaḍāgaḍi diba
kāṅhā rādhā prāṇeśvari, kāṅhā girivara-dhāri,
kāṅhā nātha baliyā ḍākiba (4)

mādhavī kuṅjera’pari, sukhe vasi śuka śārī,
gāibeka rādhā-kṛṣṇa rasa.
taru mūle vasi tāhā, śuni juḍāiba hiyā,
kabe sukhe goñāba divasa (5)

śrī-govinda śrī gopīnātha, śrīmatī-rādhikā-sātha,
dekhiba ratana-siṁhāsane.
dīna narottama dāsa, karaye durlabha āśa,
e-mati haibe kata dine (6)

When will I give up all material sense gratification and accept only a waterpot, loincloth and torn garments? When will I develop attachment for Krşņa and go to live in the nikuñja groves of Braja? O Lord Hari, when will that auspicious day come?

When will that day be mine that I wander in Vrndāvana like a mendicant eating only fruits and roots at the end of the day?

When will I take bath in the Yamunā in loving ecstasy, and wan- der about Vrndāvana with my hands raised, crying out the names of Rādhā and Krşņa?

As soon as I see Sanketa, the secret meeting place of Rādhā and Krşņa, I will roll on the ground with love and my burning life will be satiated. I will call out, “Where is Śrī Rādhā, my life and soul, and where is Giribara-dhārī, my beloved Lord?”

As the male and female parrots sing of the loving pastimes of Rādhā and Krsna while sitting on a Mādhavī kuñja, I will sit under the tree the whole day listening to them, and my burning heart will find relief.

When will I see my Lords Govinda Gopīnātha and Śrīmatī Rādhikā as They happily sit together on a jewelled throne? Poor Narottama dāsa prays for such rare vision.

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साधक-देहोचित
श्रीवृन्दावन वास लालसा भजन ३

(भक्त की वृन्दावन में रहने की तीव्र इच्छा)

करंङ्ग कोपीन लइया, छेंडा कान्था गाय दिया,
तेयागिब सकल विषय।
कृष्णे अनुराग हबे, व्रजेर निकुञ्जे कबे,
जाइया करिब निजालय ॥१॥

हरि हरि! कबे मोर हइबे सुदिन !
फलमूल वृन्दावने, खाञा दिबा- दिबा-अवसाने,
भ्रमिब हइया उदासीन ॥२॥ 

शीतल यमुना जले, स्नान करि कुतूहले,
प्रेमावेशे आनन्दित हञा।
बाहुर उपर बाहु तुलि, वृन्दावने कुलि कुलि,
कृष्ण बलि बेड़ाब कान्दिया ॥३॥

देखिब संकेतस्थान, जुडाबे तापित प्राण,
प्रेमावेशे गड़ागड़ि दिब।
काँहा राधा प्राणेश्वरि, काँहा गिरिवरधारि,
काँहा नाथ बलिया डाकिब ॥४॥ 

माधवीकुञ्जेर’ परि, सुखे वसि’ शुकशारी,
गाइबेक राधाकृष्ण रस।
तरुमूले वसि’ ताहा, शुनि’ जुड़ाइब हिया,
कबे सुखे गोञाब दिवस ॥५॥ 

श्रीगोविन्द, गोपीनाथ, श्रीमती-राधिका साथ,
देखिब रतन सिंहासने ।
दीन नरोत्तमदास, करये दुर्लभ आश,
ए मति हइबे कत दिने ॥६॥

मैं कब समस्त विषय वस्तुओं का त्याग कर दूँगा और कब मैं केवल एक कमंडलु, कौपीन एवं फटे वस्त्रों को स्वीकार करूँगा? कब कृष्ण के प्रति आसक्ति विकसित करके व्रज के निकुञ्ज में निवास करूँगा?

हे भगवान् हरि! कब वह शुभ दिन आयेगा जब मैं भिखारी के समान वृन्दावन में भ्रमण करूँगा? कब दिन के अन्त में फल-कन्दमूल ग्रहण करूँगा? कब यमुना के शीतल जल में आनन्दपूर्वक स्नान करूँगा और वृन्दावन में अपने

दोनों हाथ ऊपर उठाकर राधाकृष्ण के नामों का उच्चारण करते हुए भ्रमण करूँगा? जैसे ही मैं संकेत स्थान जो कि राधाकृष्ण की गुह्य लीलाओं का स्थान है, देखकर वहाँ प्रेमविभोर होकर लोट-पोट होऊँगा तभी मेरा तप्तमय जीवन शांत होगा। मैं उच्चस्वर में पुकारूँगा-प्राणेश्वरी श्रीराधा, आप कहाँ हैं? हे गिरिवरधारी आप कहाँ हैं?

माधवीकुंज में आनन्द पूर्वक बैठे हुए तोता-मैना (शारी) राधाकृष्ण की लीलाओं का वर्णन कर रहे होंगें। वहाँ वृक्ष के नीचे बैठकर उस ध्वनि को सुनकर मेरा हृदय शीतल होगा।

श्रील नरोत्तमदास ठाकुर कहते हैं “मैं उस दुर्लभ दृश्य की कामना करता हूँ जब श्री गोविन्द, श्रीमती राधारानी आनन्दपूर्ण रत्नजड़ित सिंहासन पर बैठे हुए हैं।”

साधक-देहोचित
श्रीवृन्दावन वास लालसा भजन ३

(श्रीवृंदावन धामात राहण्याची भक्ताची अभिलाषा)

करंङ्ग कोपीन लइया, छेंडा कान्था गाय दिया,
तेयागिब सकल विषय।
कृष्णे अनुराग हबे, व्रजेर निकुञ्जे कबे,
जाइया करिब निजालय ॥१॥

हरि हरि! कबे मोर हइबे सुदिन !
फलमूल वृन्दावने, खाञा दिबा- दिबा-अवसाने,
भ्रमिब हइया उदासीन ॥२॥ 

शीतल यमुना जले, स्नान करि कुतूहले,
प्रेमावेशे आनन्दित हञा।
बाहुर उपर बाहु तुलि, वृन्दावने कुलि कुलि,
कृष्ण बलि बेड़ाब कान्दिया ॥३॥

देखिब संकेतस्थान, जुडाबे तापित प्राण,
प्रेमावेशे गड़ागड़ि दिब।
काँहा राधा प्राणेश्वरि, काँहा गिरिवरधारि,
काँहा नाथ बलिया डाकिब ॥४॥ 

माधवीकुञ्जेर’ परि, सुखे वसि’ शुकशारी,
गाइबेक राधाकृष्ण रस।
तरुमूले वसि’ ताहा, शुनि’ जुड़ाइब हिया,
कबे सुखे गोञाब दिवस ॥५॥ 

श्रीगोविन्द, गोपीनाथ, श्रीमती-राधिका साथ,
देखिब रतन सिंहासने ।
दीन नरोत्तमदास, करये दुर्लभ आश,
ए मति हइबे कत दिने ॥६॥

१. कधी मी सर्व विषयवस्तूंचा त्याग करून केवळ कौपिन, कमंडलू आणि शरीर झाकण्यासाठी फाटलेली रजई यांचा स्वीकार करीन, श्रीकृष्णांप्रती आसक्ती वाढून व्रजधामातील निकुंजवनात स्थित होईन ?

२. हे हरी, कधी तो मंगलमय दिवस येईल, ज्यावेळी मी एका भिक्षुकाप्रमाणे संपूर्ण वृंदावनात भ्रमण करून दिवस मावळल्यानंतर फळे व कंदमुळे खाईन?

३. प्रेमविभोर होऊन यमुनेच्या शीतल जळात स्नान करीन आणि वृंदावनात भ्रमण करीन. दोन्ही बाहू उंचावून मोठ्याने राधाकृष्णांचे नाम पुकारीन.

४. जेव्हा मी संकेत (एक लीलास्थान), राधा-कृष्णांचे गुप्त भेटस्थळ पाहीन, तेथे मी प्रेमाने लोळण घेईन त्याने माझे तप्त जीवन शांत होईल. मी पुकारीन, “प्राणेश्वरी, श्रीमती राधाराणी कुठे आहे, माझे प्राणधन, गिरीवरधारी कुठे आहेत?”

५. माधवी कुंजावर बसून शुक आणि शारी राधाकृष्णांच्या लीलांचे गुणगान गातील. त्या वृक्षाखाली बसून ती गाणी श्रवण करीत मी पूर्ण दिवस घालवीन, अशाप्रकारे माझे हृदय संतुष्ट होईल.

६. मी गोविंद, गोपीनाथ आणि श्रीमती राधिकेला रत्नजडीत सिंहासनावर विराजमान पाहीन. हा दीन, हीन नरोत्तम दास अशा दुर्लभ संधीची अभिलाषा करीत आहे.

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