Kabe Krsna Dhana Paba
Song Name: Kabe Krsna Dhana Paba
Official Name: Mathura Virohcita Darsana Lalasa Song 1
(Devotee’s Yearning to see Mathura)
Author: Narottama Dasa Thakura
Book Name: Prarthana
Language: Bengali
Song Name: Kabe Krsna Dhana Paba
Official Name: Mathura Virohcita Darsana Lalasa Song 1
(Devotee’s Yearning to see Mathura)
Author: Narottama Dasa Thakura
Book Name: Prarthana
Language: Bengali
kabe kṛṣṇa-dhan pāba, hiyāra mājhāre thoba,
juṛāiba tāpita-parāṇa
sājāiyā diba hiyā, basāiba prāṇa-priyā,
nirakhiba se candra-bayāna (1)
he sajani kabe mora haibe sudina?
se prāṇa-nāther saṅge, kabe vā phiriba raṅge
sukhamaya yamunā-pulina (2)
lalitā viśākhā lañā, tāṅhāre bheṭiba giyā,
sājāiyā nānā upahāra
sadaya haiyā vidhi, milāibe guṇa-nidhi,
hena bhāgya haibe āmāra (3)
dāruṇa vidhira nāṭa, bhāṅgila premera hāṭa
tila-mātra nā rākhila tāra
kahe narottama dāsa, ki mora jīvane āśa,
chāḍi gela brajendra-kumāra (4)
When will I gaze on the moonlike face of Śrī Krsna, the treasure more dear to me than my life? When will I decorate Him and seat Him in my heart, relieving my sinful life?
O my dear friend, when will that auspicious day come when I will wander in ecstasy with the Lord of my heart on the banks of Yamuna?
Carrying precious gifts in my hands, I will meet Him along with Lalita and Viśākhā. Will kind-hearted Providence ever allow me the good fortune to meet my Lord, the ocean of transcendental qualities?
Alas, my fate is that the stringent laws of Providence have scat- tered the market-place of love of God and nothing is left there. Narottama dāsa laments, “What hope is there for living now that the son of King of Braja has left me?”
Not Available.
मथुराविरहोचित दर्शन-लालसा,
(मथुरा-दर्शन करने की भक्त की तीव्र उत्कण्ठा)
कबे कृष्णधन पाब, हियार माझारे थोब,
जुड़ाइब तापित-पराण।
साजाइया दिब हिया, बसाइब प्राणप्रिया,
निरखिब से चन्द्रबयान ॥१॥
हे सजनि! कबे मोर हइबे सुदिन।
से प्राणनाथेर सङ्गे, कबे वा फिरिब रङ्गे,
सुखमय यमुनापुलिन ॥२॥
ललिता विशाखा लञा, ताँहारे भेटिब गिया,
साजाझ्या नाना उपहार।
सदय हड्या विधि, मिलाइबे गुणनिधि,
हेन भाग्य हइबे आमार ॥३॥
दारुण विधिर नाट, भाङ्गिल प्रेमेर हाट,
तिलमात्र ना राखिल तार।
कहे नरोत्तमदास, कि मोर जीवने आश,
छाड़ि गेल ब्रजेन्द्रकुमार ॥४॥
कब श्रीकृष्णरूपी धन को प्राप्त कर मेरा हृदय आनन्दित होगा एवं मेरे तापित-प्राणों में सुख की अनुभूति होगी? कब मैं श्रीकृष्ण, जो कि मुझे मेरे प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं, के चन्द्रमुख को निहारूँगी? मैं कब उनका श्रृंगार करूंगी तथा उन्हें अपने हृदय रूपी सिंहासन पर बिठाऊँगी और अपने पापी जीवन से मुक्ति प्राप्त करूँगी?
हे मेरी प्रिय सखी, वह शुभ दिन कब आएगा जब मैं अपने प्राणनाथसंग यमुना-तट पर आनन्दित हो रमण करूँगी?
अपने हाथों में बहुमूल्य उपहार लिए मैं श्री ललिता एवं श्री विशाखा सखी संग उनसे भेंट करने जाऊँगी? क्या दयार्द्र विधाता मुझे मेरे गुणनिधान स्वामी से भेंट करने का सौभाग्य प्रदान करेगा?
आह! मेरा भाग्य देखिए, विधि के कठोर विधान ने भगवत्प्रेम के हार (बाजार) को उजाड़ दिया है तथा तिल-मात्र भी शेष नहीं बचा है। श्रील नरोत्तम दास ठाकुर विलाप कर रहे हैं “अब मेरे जीवन की क्या आशा शेष है क्योंकि व्रजेन्द्रनन्दन, श्रीकृष्ण, मुझे छोड़कर जा चुके हैं?”
मथुराविरहोचित दर्शन-लालसा,
(मथुरा-दर्शन करण्यासाठी भक्ताची तीव्र उत्कण्ठा)
कबे कृष्णधन पाब, हियार माझारे थोब,
जुड़ाइब तापित-पराण।
साजाइया दिब हिया, बसाइब प्राणप्रिया,
निरखिब से चन्द्रबयान ॥१॥
हे सजनि! कबे मोर हइबे सुदिन।
से प्राणनाथेर सङ्गे, कबे वा फिरिब रङ्गे,
सुखमय यमुनापुलिन ॥२॥
ललिता विशाखा लञा, ताँहारे भेटिब गिया,
साजाझ्या नाना उपहार।
सदय हड्या विधि, मिलाइबे गुणनिधि,
हेन भाग्य हइबे आमार ॥३॥
दारुण विधिर नाट, भाङ्गिल प्रेमेर हाट,
तिलमात्र ना राखिल तार।
कहे नरोत्तमदास, कि मोर जीवने आश,
छाड़ि गेल ब्रजेन्द्रकुमार ॥४॥
१. कधी मी श्रीकृष्णांना पाहीन आणि माझ्या हृदयात त्यांना बंदिस्त करीन? अशाप्रकारे मी माझे पापमय जीवन मुक्त करीन. माझ्या भगवंतांना सजवून त्यांना मी हृदयात बसवून घेईन.
२. हे प्रिय सखा! कधी तो मंगलमय दिवस येईल, जेव्हा मी भगवंतांच्या मुखचंद्राकडे पाहात राहीन, कधी मी हृदयस्थ भगवंतांना बरोबर घेऊन भावविभोरतेने यमुनेच्या तीरावर भ्रमण करीन?
३. अनेक भेटवस्तू घेऊन ललिता, विशाखा सखींबरोबर मी त्यांना भेटण्यासाठी जाईन. काय माझे भाग्य, दयाळू विधी मला दिव्य गुणांचे आगर श्रीभगवंताना भेटण्यास देईल का?
४. विधीच्या दारुण कायद्याने भगवप्रेमाच्या बाजाराचा नाश झाला आहे. तीळमात्र देखील आता ते प्रेम शिल्लक नाही. नरोत्तम दास म्हणतात, “व्रजराजच मला सोडून गेले आहेत, आता माझ्या जगण्यात कोणती आशा उरली आहे?”
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(1) juṛāiba a pāñcha parāṇa