Hari Hari Kabe Mora Haibe Sudina 2

Song Name: Hari Hari Kabe Mora Haibe Sudina 2
Official Name: Punah Swabhista Lalasa Song 1
Author: Narottama Dasa Thakura
Book Name: Prarthana
Language: Bengali

hari hari kabe mora haibe sudina
govardhana girivare, parama nibhṛta ghare,
rāi-kānu karāiba śayana (1)

bhṛńgārera jale raṅgā, caraṇa dhoyāiba
muchāba āpana cikure
kanaka-sampuṭa kari, karpūra tāmbūla pūri,
jogāiba dūṅhūka adhare (2)

priya-sakhī-gaṇa saṅge, sevana kariba raṅge
caraṇa seviba nija kare
dūṅhūka kamala-diṭhi, kautuke heraba,
dūṅhū aṅga pulaka antare (3)

mallikā mālatī jūhī, nānā phule mālā gāṅthi,
kabe diba doṅhāra galāya
soṇāra kaṭorā kari, karpūra candana bhari
kabe diba doṅhākāra gāya (4)

āra kabe emana haba, dūṅhū-mukha nirakhiba
līlā-rasa nikuñja-śayane
śrī kundalatār saṅge, keli-kautuka raṅge,
narottama karibe śravaṇe (5)

O Lord Hari, when will that auspicious day come that I will make a beautiful couch for Radha and Kṛṣṇa in a secluded flower cottage on Govardhana Hill, who is the best of mountains?

When will I wash Their lotus feet with scented water from a waterpot and then dry them with my own hair? When will I take tambula, scented with camphor and betelnuts from a golden box and offer them to the Divine Couple?

With my own hands, I will blissfully serve Their lotus feet in the association of dear sakhis. When I gaze upon Their lotus eyes, my whole body will shiver due to ecstatic love.

When will I be able to string garlands from mallikā, malati, yūhī, and various other flowers, and offer these garlands to my Lords? When will I offer tambula, and prepare sandalwood paste and cam- phor in a golden bowl to apply on Them?

When will I be able to see Their lotus faces while They rest in the Nikuñja? Narottama dasa eagerly hears the pastimes of Radha and Kṛṣṇa from Śrī Kuṇḍalatā.

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हरि हरि ! कबे मोर हइबे सुदिन।
गोवर्धन गिरिवरे, परम निभृत घरे,
राइ कानु कराइब शयन ॥१॥

भृङ्गारेर जले राङ्गा- चरण धोयाइब,
मुछब आपन चिकुरे।
कनकसम्पुट करि, ‘कर्पूर ताम्बूल पूरि’
जोगाइब दूँहूक अधरे ॥२॥

प्रियसखीगण सङ्गे, सेवन करिब रङ्गे,
चरण सेविब निज करे।
दूँहूक कमल-दिठि, कौतुके हेरब,
दूँहू अङ्ग पुलक अन्तरे ॥३॥

मल्लिका मालती जुही, नाना फुले माला गाँथि,
कबे दिब दोंहार गलाय ।
सोनार कटोरा करि, कर्पूर चन्दन भरि,
कबे दिब दोंहाकार गाय ॥४॥

आर कबे एमन हबे, दूँहू-मुख निरखिब,
लीलारस निकुंजशयने।
श्रीकुन्दलतार सङ्गे, केलि-कौतुक रङ्गे,
 नरोत्तम करिबे श्रवणे ॥५॥

हे भगवान् हरि! वह शुभ दिन कब आएगा जब मैं श्री श्री राधा-कृष्ण हेतु गिरिराज गोवर्धन पर एक निर्जन स्थान में स्थित पुष्प- कुटी में एक सुन्दर शय्या का निर्माण करूंगी?

कब मैं उनके चरणकमलों को जलपात्र में रखे सुगन्धित जल द्वारा प्रक्षालित करूँगी, तथा तत्पश्चात् उन्हें अपने केशों द्वारा सुखाऊँगी? कब मैं कर्पूर तथा पुँगीफल (सुपारी) द्वारा सुगन्धित किया ताम्बूल स्वर्ण-डिबिया से निकाल कर दिव्य-युगल को अर्पित करूँगी ?

प्रिय सखीगण के संग में मैं आनन्दमग्न होकर उनके चरणारविन्दों की अपने हाथों से सेवा करूँगी। जब मैं उनके कमलनयनों को टकटकी लगाकर देखूँगी, तब मेरी समूची देह परमानन्दायक प्रेम से कम्पित हो उठेगी।

कब मैं मल्लिका, मालती, जूही तथा अन्य नाना प्रकार के पुष्पों द्वारा अपने स्वामीजन हेतु माला गूंथने एवं उनके गले में अर्पित करने में सक्षम बन पाऊँगी? कब मैं एक स्वर्ण- कटोरे में रखे कर्पूरयुक्त चन्दन का दिव्य युगल के श्रीअंगों पर लेपन करूँगी ?

और ऐसा कब होगा कि निकुँज में शयन करते हुए श्री श्री राधा-कृष्ण के श्री मुखों का मैं दर्शन करूँ? श्रील नरोत्तमदास ठाकुर उत्सुकतापूर्वक श्री कुन्दलता द्वारा वर्णित श्रीश्री राधा-कृष्ण की क्रीडाओं का श्रवण करते हैं।

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