Hari Hari Ara Kabe Palatibe Dasa
Song Name: Hari Hari Ara Kabe Palatibe Dasa
Official Name: Sadhaka Dehocita Sri Vrindavana Vasa Lalasa Song 2
Author: Narottama Dasa Thakura
Book Name: Prarthana
Language: Bengali
Song Name: Hari Hari Ara Kabe Palatibe Dasa
Official Name: Sadhaka Dehocita Sri Vrindavana Vasa Lalasa Song 2
Author: Narottama Dasa Thakura
Book Name: Prarthana
Language: Bengali
hari hari āra kabe pālaṭibe daśā
e saba kariyā vāme, jāba vṛndāvana-dhāme,
ei mane kariyāchi āśā (1)
dhana jana putra dāre, e saba kariyā dūre,
ekānta haiyā kabe jāba
saba duḥkha parihari, vṛndāvane vāsa kari,
mādhukarī māgiyā khāiba (2)
yamunāra jala yena, amṛta samāna hena,
kabe piba udara pūriyā
kabe rādhā-kuṇḍa jale, snāna kari kutūhale,
śyāma-kuṇḍe rahiba paḍiyā (3)
bhramiba dvādaśa vane, rasa keli ye ye sthāne,
premāveśe gaḍāgaḍi diyā
sudhāiba jane jane, vraja-vāsi-gaṇa-sthāne
nivediba caraṇa dhariyā (4)
bhojanera sthāna kabe, nayana-gocara habe,
āra yata āche upavana
tāra madhye vṛndāvana, narottama dāsera mana,
āśā kare yugala caraṇa (5)
O Lord Hari, when will my condition change so that I can aban- don everything and go to Vrndāvana?
When will I give up wealth, followers, sons, wife and go to Vrndāvana? When will I forget all my distresses and simply reside in Vrndāvana? When will I maintain my livelihood by begging like a bee?
When will I consider the water of Yamuna as nectarean and drink to my full satisfaction? When will I take bath in the waters of Rādhā-kundā and lie down on the banks of Śyāma-kunda?
When will I travel to the twelve forests where various pastimes of Rādhā and Krsna took place and roll on the ground? When will I fall at the feet of the Vrajāvāsīs and inquire about the locations of the pastimes?
When will I see the place where Krsņa ate with His cowherd boy- friends? When will I visit the forests and sub-forests of Vrndāvana? Hankering in this way, Narottama dāsa desires the lotus feet of Rādhā and Krsna.
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साधक-देहोचित
श्रीवृन्दावन वास लालसा भजन २
(भक्त की वृन्दावन में रहने की तीव्र इच्छा)
हरि हरि ! आर कबे पालटिबे दशा।
ए सब करिया बामे, या’ब वृन्दावन-धामे,
एइ मने करियाछि आशा ॥१॥
धन, जन, पुत्र दारे, ए सब करिया दूरे,
एकान्त हइया कबे जा’ब।
सब दुःख परिहरि’, वृन्दावने वास करि’,
माधुकरी मागिया खाइब ॥२॥
यमुनार जल येन, अमृत समान हेन,
कबे पिब उदर पूरिया।
कबे राधाकुण्डजले, स्नान करि कुतूहले,
श्यामकुण्डे रहिब पड़िया ॥३॥
भ्रमिब द्वादश वने, रसकेलि ये ये स्थाने,
प्रेमावेशे गडागडि दिया।
सुधाइब जने जने, ब्रजवासिगणस्थाने,
निवेदिब चरण धरिया ॥४॥
भोजनेर स्थान कबे, नयनगोचर हबे,
आर यत आछे उपवन।
तार मध्ये वृन्दावन, नरोत्तमदासेर मन,
आशा करे युगल चरण ॥५॥
हे भगवान् हरि! कब मेरी स्थिति बदलेगी जिससे मैं सबका त्याग करके वृन्दावन जाऊँगा? यही एक आशा मेरे मन में है।
कब मैं धन, अनुयायी, पुत्र पत्नी इन सबको त्यागकर वृन्दावन चला जाऊँगा? कब मैं अपने दुःखों को भूलकर वृन्दावन वास करूँगा? कब मैं माधुकरी मांगकर अपनी उपजीविका चलाऊँगा?
कब मैं अमृत के समान यमुना जल का पेटभरके पान करूँगा? कब मैं राधाकुण्ड के जल में स्नान करके श्यामकुण्ड के तट पर पड़ा रहूँगा?
कब मैं द्वादश वनों में भ्रमण करूँगा, जहाँ राधाकृष्ण ने दिव्य लीलायें की? वहाँ कब लोट-पोट हो जाऊँगा? कब मैं ब्रजवासियों के चरणों में गिरूँगा और राधाकृष्ण की लीलास्थलियों के बारे में पूहूँगा?
कब मैं वह स्थान देखूँगा जहाँ भगवान् कृष्ण ने अपने बाल सखाओं के साथ कलेवा किया? कब मैं वृन्दावन के वन-उपवनों को भेंट दूँगा? नरोत्तमदास एकमात्र श्रीराधाकृष्ण के चरणों की आशा कर रहे हैं।
साधक-देहोचित
श्रीवृन्दावन वास लालसा भजन २
(श्रीवृंदावन धामात राहण्याची भक्ताची अभिलाषा)
हरि हरि ! आर कबे पालटिबे दशा।
ए सब करिया बामे, या’ब वृन्दावन-धामे,
एइ मने करियाछि आशा ॥१॥
धन, जन, पुत्र दारे, ए सब करिया दूरे,
एकान्त हइया कबे जा’ब।
सब दुःख परिहरि’, वृन्दावने वास करि’,
माधुकरी मागिया खाइब ॥२॥
यमुनार जल येन, अमृत समान हेन,
कबे पिब उदर पूरिया।
कबे राधाकुण्डजले, स्नान करि कुतूहले,
श्यामकुण्डे रहिब पड़िया ॥३॥
भ्रमिब द्वादश वने, रसकेलि ये ये स्थाने,
प्रेमावेशे गडागडि दिया।
सुधाइब जने जने, ब्रजवासिगणस्थाने,
निवेदिब चरण धरिया ॥४॥
भोजनेर स्थान कबे, नयनगोचर हबे,
आर यत आछे उपवन।
तार मध्ये वृन्दावन, नरोत्तमदासेर मन,
आशा करे युगल चरण ॥५॥
१. हे हरी! माझ्या दशेमध्ये कधी बदल होईल? कधी मी सर्वांचा त्याग करून वृंदावनात जाईन? हीच अभिलाषा माझे मन करीत आहे.
२. कधी मी, संपत्ती, शिष्य, पत्नी, मुले यांचा त्याग करून वृंदावनास जाईन, सर्व दुःखांना विसरून, माधुकरी मागीत वृंदावनात मी माझे जीवन व्यतित करीन?
३. कधी मी, यमुनेच्या पाण्याला अमृत समजून पूर्ण संतुष्टी होईपर्यंत प्राशन करीन. कधी मी राधाकुंडात स्नान करून शाम कुंडाच्या तीरावर विश्राम करीन?
४. कधी मी, जेथे राधाकृष्णांनी नित्य लीला केल्या त्या बारा वनांत भ्रमण करीन, त्या भूमीत लोळण घेईन, व्रजवासीयांच्या चरणांवर पडून त्यांच्याकडे लीलास्थळांबद्दल विचारणा करीन?
५. जेथे भगवान श्रीकृष्णांनी गोपबालकांसमवेत काला (भोग घेतला) केला ती ठिकाणे मी कधी पाहीन? कधी मी वृंदावनातील छोट्या-मोठ्या वनांना भेटी देईन ? हा नरोत्तम दास केवळ राधाकृष्णांच्या चरणांच्या प्राप्तीची अभिलाषा करीत आहे.
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