Are Bhai Bhaja Mora Gauranga​

Song Name: Are Bhai Bhaja Mora Gauranga
Official Name: Gauranga Nistha
(Faith in Lord Chaitanya)
Author: Narottama Dasa Thakura
Book Name: Prarthana
Language: Bengali

are bhāi! bhaja mora gaurāṅga caraṇa
nā bhajiyā mainu dukhe, ḍubi gṛha-viṣa-kūpe,
dagdha kaila e pāñca parāṇa (1)

tāpa-traya viṣānale, ahar-niśi hiyā jvale,
deha sadā haya acetana
ripu-vaśa indriya haila, gaurā pada pāśarila,
vimukha haila hena dhana (2)

hena gaurā dayāmaya, chāḍi saba lāja bhaya,
kāya mane laha re śaraṇa
parama durmati chila, tāre gaurā uddhārila,
tā’rā haila patita-pāvana (3)

gaurā dvija naṭarāje, bāndhaha hṛdaya mājhe
ki karibe saṁsāra śamana
narottama dāse kahe, gaurā sama keha nahe,
nā bhajite deya prema dhana (4)

O my dear brothers, please accept the lotus feet of my Lord Gaurānga. Without worshipping Gauranga, I have fallen into the poisonous well of family life and my five life airs are being dried up.

My heart is burning day and night due to the poisonous blazing fire of the threefold miseries and I always remain unconscious-like. My senses have become my enemies, and having become averse, I have forgotten to serve the treasure of the lotus feet of Gauranga.

Therefore, I pray to give up all shyness and fear and take shelter and surrender to the most merciful Gaurānga with body and mind. In this way, wretched sinful persons were delivered by Lord Gaurānga and thus He has become known as “the deliverer of the fallen souls.”

Please place Gauranga, the King of all the brāhmaņas and Lord of the dancers, within your heart. What then can Yamarāja, the lord of death, do? Narottama dāsa says, “There is no one else like Gauranga, because He gives us that treasure of love of God which is without reverential worship.”

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गौरांग निष्ठा
(
भगवान् श्री चैतन्य के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा)

आरे भाई! भज मोर गौराङ्गचरण ।
ना भजिया मैनु दुःखे, डुबि’ गृह-विष कूपे,
दग्ध कैल ए पाँच पराण ॥१॥

तापत्रय-विषानले, अहर्निशि हियाजले,
देह सदा हय अचेतन ।
रिपुवश इंद्रिय हैल, गौरापद पाशरिल,
विमुख हइल हेन धन ॥ २॥

हेन गौर दयामय, छाड़ि’ सब लाज-भय,
कायमने लह रे शरण ।
परम दुर्मति छिल, तारे गोरा उद्घारिल,
तारा हैल पतितपावन ॥३॥

गोरा द्विज-नटराजे, बान्धह हृदय-माझे,
कि करिबे संसार-शमन ।
नरोत्तमदासे कहे, गोरा-सम केह नहे,
ना भजिते देय प्रेमधन ॥४॥

हे मेरे बन्धुओ! मेरे प्रभु गौरांगदेव के श्रीचरणों का भजन करो। यह कितनी दुःख की बात है, कि मैं उनका भजन न करने के कारण गृहरूपी विषकूप में डूब गया हूँ। जिससे मेरे पाँचों प्राण जल गये।

त्रितापरूपी विषाग्नि में दिन-रात मेरा हृदय जल रहा है और मैं सदा अचेत सा रहता हूँ। काम-क्रोधादि षड्रिपुओं के वश में मेरी इंद्रियाँ हो गई हैं। श्री गौरांग महाप्रभु के चरणों को भूलने के कारण मैं भगवत्प्रेम रूपी महाधन से वंचित हो गया हूँ।

श्रीगौरांग महाप्रभु परम दयालु हैं। उन्होंने परम दुर्मति, नीच व्यक्तियों का भी उद्धार किया है। वे पतितों को पावन करने वाले हैं। इसलिए समस्त लाज-भय त्यागकर शरीर एवं मन से उनकी शरण ग्रहण करो।

द्विज नटराज, गौरचन्द्र को अपने हृदय में बाँध कर रखिये। फिर सांसारिक काल आपका क्या करेगा? श्रील नरोत्तमदास ठाकुर कहते हैं कि श्रीगौरांगदेव के समान और कोई दयालु नहीं है, क्योंकि वे भगवत्प्रेमरूपी महाधन भजन न करनेवाले को भी प्रदान करते हैं।

गौरांग निष्ठा
(
भगवान् श्री चैतन्य यांच्या प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा)

आरे भाई! भज मोर गौराङ्गचरण ।
ना भजिया मैनु दुःखे, डुबि’ गृह-विष कूपे,
दग्ध कैल ए पाँच पराण ॥१॥

तापत्रय-विषानले, अहर्निशि हियाजले,
देह सदा हय अचेतन ।
रिपुवश इंद्रिय हैल, गौरापद पाशरिल,
विमुख हइल हेन धन ॥ २॥

हेन गौर दयामय, छाड़ि’ सब लाज-भय,
कायमने लह रे शरण ।
परम दुर्मति छिल, तारे गोरा उद्घारिल,
तारा हैल पतितपावन ॥३॥

गोरा द्विज-नटराजे, बान्धह हृदय-माझे,
कि करिबे संसार-शमन ।
नरोत्तमदासे कहे, गोरा-सम केह नहे,
ना भजिते देय प्रेमधन ॥४॥

अरे बंधू! माझ्या गौरांग महाप्रभूच्या चरणांचे भजन करा. दुःखाची गोष्ट ही आहे की, मी त्यांचे भजन न केल्याने या गृहरूपी विषयकूपात पडलो आहे, ज्याने माझे पाचही प्राण जाळून टाकले आहे. 

त्रितापरूपी विषाग्नीमध्ये माझे अंतःकरण रात्रंदिवस जळत आहे, माझे शरीर सतत अचेतन होत आहे आणि सर्व इंद्रिये शत्रूना वश झाली आहेत. श्रीगौरांग महाप्रभूच्या पादपद्यांना विसरल्याने मी परम धनापासून वंचित झालो आहे.

श्रीगौरांग महाप्रभू अतिशय दयाळू आहेत, त्यांनी परम दुर्मती लोकांचाही उद्धार केला आणि पतितपावन झाले. तेव्हा सर्व लाज सोडून तन-मनाने त्यांना शरण जा. 

द्विज नटराज श्रीगौरांग महाप्रभूना आपल्या हृदय-मध्यावर बांधून घ्या, मग सांसारिक काळ तुम्हाला काय करणार आहे? श्रीनरोत्तम दास म्हणतात की, गौरांग महाप्रभूसमान कोणीही नाही, ते तर भक्ती न करणाऱ्यांनाही प्रेमधन प्रदान करतात.

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