Thakura Vaisnava Gana
Song Name: Thakura Vaisnava Gana
Official Name: Vaisnava Vijnapti Song 1
(Prayers to Vaishnavas)
Author: Narottama Dasa Thakura
Book Name: Prarthana
Language: Bengali
Song Name: Thakura Vaisnava Gana
Official Name: Vaisnava Vijnapti Song 1
(Prayers to Vaishnavas)
Author: Narottama Dasa Thakura
Book Name: Prarthana
Language: Bengali
ṭhākura vaiṣṇava gaṇa, kari ei nivedana,
mo baḍa adhama durācāra
dāruṇa saṁsāra nidhi, tāhe ḍubāila vidhi,
keśe dhari more kara pāra (1)
vidhi baḍa balavāna, nā śune dharama jñāna,
sadāi karama pāśe bāṅdhe
nā dekhi tāraṇa leśa, yata dekhi sab kleśa,
anātha kātare teñi kānde (2)
kāma krodha lobha moha, mada abhimāna saha,
āpana āpana sthāne ṭāne
aichana āmāra mana, phire yena andha jana,
supatha vipatha nāhi jāne (3)
nā lainu sata mata, asate majila cita,
tuyā pāde nā karinu āśa
narottama dāsa kaya, dekhi śuni lāge bhaya,
tarāiyā laha nija pāśa (4)
O saintly Vaisnava! Please hear my prayer. I am the most wretch- ed and fallen soul, drowning in this formidable material ocean by Providence. Please help me to cross over this ocean by grabbing me by the hair of my head and pulling me out.
The laws of Providence are so powerful that they do not consider religion or knowledge, rather they bind one with the ropes of karma. I do not find any source of deliverance from these miserable condi- tions, and I always lament because I am afflicted by this and I am without a master.
Lust, anger, greed, illusion, pride are pulling me to their respec- tive places. Thus my mind is like a blind man without any sense of discrimination.
My mind did not accept the path of the devotees. I was absorbed in bad association. Narottama dāsa says, “I did not aspire for your lotus feet, O Lord. Please accept me and keep me at Your lotus feet, as I am afraid.”
বৈষ্ণবে বিজ্ঞপ্তি।
ঠাকুর বৈষ্ণবগণ করি মুই নিবেদন,
মো বড় অধম দুরাচার।
দারুণ সংসার-নিধি, তাহে ডুবাইল বিধি,
কেশে ধরি মোরে কর পার।।
বিধি বড় বলবান, না শুনে ধরম-জ্ঞান,
সদাই করম-পাশে বান্ধে।
না দেখি তারণ-লেশ, ডাক যত দেখি সব ক্লেশ,
অনাথ কাতরে তেঞি কান্দে।।
কাম ক্রোধ আদি যত, নিজ অভিমানে তত্ত
আপন আপন স্থানে টানে।
ঐছন আমার মন, ফিরে যেন অন্ধজন,
সুপথ বিপথ নাহি মানে।।
না লইনু সৎ মত, অসতে মজিল চিত,
তুয়া পদে না করিনু আশ।
নরোত্তম দাসে কয়, দেখে শুনে লাগে ভয়,
এবার তরায়ে লহ নিজপাশ।।
ठाकुर वैष्णवगण
वैष्णव विज्ञाप्ति (वैष्णवों के प्रती प्रार्थना)
ठाकुर वैष्णवगण ! करि एड़ निवेदन,
मो बड़ अधम दुराचार ।
दारुण-संसार निधि, ताहे डुबाइल विधि,
केशे धरि’ मोरे कर पार ॥१ ॥
विधि बड़ बलवान, ना शुने धरम-ज्ञान,
सदाइ करम पाशे बांधे।
ना देखि तारण लेश, जत देखि सब क्लेश,
अनाथ, कातरे तेञि काँदे ॥ २ ॥
काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, अभिमान सह,
आपन-आपन स्थाने टाने ।
ऐछन आमार मन, फिरे येन अंधजन,
सुपथ विपथ नाहि जाने ॥ ३॥
ना लइनु सत मत, असते मजिल चित,
तुया पादे ना करिनु आश।
नरोत्तमदासे कय, देखि’ शुनि’ लागे भय,
तराइया लह निज पाश ॥४ ॥
हे वैष्णव ठाकुर! मेरा निवेदन सुनिए, मैं अत्यंत अधम और दुराचारी हूँ। मेरे दुर्भाग्य ने मुझे इस दुःखमय संसार सागर में डुबो दिया है, जो अत्यंत भयानक है। आप मेरे केशों को पकड़कर मुझे पार कीजिए।
विधि अत्यंत बलवान है वह किसी धर्म-ज्ञान को नही सुनती, वह सदा ही उन्हें कर्मपाश में बान्धे रखती है। मैं इससे पार होने का उपाय ही नहीं देख पाता हूँ। जहाँ भी देखता हूँ वहाँ क्लेश दीखता है। इसलिए मैं अनाथ की भाँति रो रहा हूँ।
काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, अभिमान के साथ मुझे अपनी-अपनी ओर खींच रहे हैं। मेरा मन एक अंधे के समान, सुपथ-कुपथ को जाने बिना ही इधर-उधर भटक रहा है।
मैंने भगवद्भक्तों के मार्ग का अनुसरण नहीं किया। मेरा चित्त सदा असत्संग में ही डूबा रहा। श्रील नरोत्तमदास ठाकुर कहते हैं, “हे वैष्णव ठाकुर ! मैं आपके चरणों का आश्रय नहीं ले सका। संसार की दारुण अवस्था देख-सुनकर मुझे भय लग रहा है। अतः आप कृपा करके मुझे अपने श्रीचरणों में स्थान प्रदान कीजिए।”
ठाकुर वैष्णवगण
वैष्णव विज्ञाप्ति (वैष्णवांप्रती प्रार्थना)
ठाकुर वैष्णवगण ! करि एड़ निवेदन,
मो बड़ अधम दुराचार ।
दारुण-संसार निधि, ताहे डुबाइल विधि,
केशे धरि’ मोरे कर पार ॥१ ॥
विधि बड़ बलवान, ना शुने धरम-ज्ञान,
सदाइ करम पाशे बांधे।
ना देखि तारण लेश, जत देखि सब क्लेश,
अनाथ, कातरे तेञि काँदे ॥ २ ॥
काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, अभिमान सह,
आपन-आपन स्थाने टाने ।
ऐछन आमार मन, फिरे येन अंधजन,
सुपथ विपथ नाहि जाने ॥ ३॥
ना लइनु सत मत, असते मजिल चित,
तुया पादे ना करिनु आश।
नरोत्तमदासे कय, देखि’ शुनि’ लागे भय,
तराइया लह निज पाश ॥४ ॥
हे ठाकूर वैष्णवगण! मी एक निवेदन करीत आहे- मी अत्यंत अधम आणि दुराचारी आहे. हा संसाररूपी समुद्र अतिशय भयानक आहे आणि विधीने मला या दारुण संसारात बुडविले आहे. आपणच केसांना धरून मला भवपार करा.
विधी अतिशय बलवान आहे कोणत्याही धर्मज्ञानाची बोलणी ही ऐकत नाही, सतत जीवांना कर्मपाशात अडकवित असते.माझी अशी अवस्था झाली आहे; कोणत्या दिशेला हा समुद्र पार करावा मला समजत नाही. ज्या दिशेला पाहतो तेथे केवळ
क्लेशच क्लेश आहे. त्यामुळे स्वतःला मी अनाथ समजू लागलो आहे आणि थरथरत रडत आहे. हे काम, क्रोध, लोभ, मोह आणि अभिमानही याच्याबरोबर आहेत हे सर्वजण मला आपल्याकडे खेचत आहेत. माझे मनही असे आहे जसे, एखादा आंधळा, ज्याला योग्य आणि अयोग्य मार्ग कोणता हे कळत नाही.
मी कधीच योग्य मार्गाचा अवलंब केला नाही त्याउलट असत् मार्गातच माझे चित्त सर्वदा रमले. आपल्या चरणांचाही मी आश्रय घेतला नाही. श्रील नरोत्तम दास ठाकूर सांगतात की, हे वैष्णवगण! या संसाराची दारुण अवस्था ऐकून-पाहून मला भिती वाटत आहे. आता, तुम्हीच मला पार करवून आपल्याजवळ ठेवा.
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