Thakura Vaisnava Pada

Song Name: Thakura Vaisnava Pada
Official Name: Vaisnava Mahima Song 1
(Glorification of devotees)
Author: Narottama Dasa Thakura
Book Name: Prarthana
Language: Bengali

ṭhākura vaiṣṇava pada, avanīra su-sampada,
śuna bhāi hañā eka mana
āśraya laiyā bhaje, tāre kṛṣṇa nāhi tyaje,
āra saba mare akāraṇa (1)

vaiṣṇava caraṇa jala, prema bhakti dite bala,
āra keha nahe balavanta
vaiṣṇava caraṇa reṇu, mastake bhūṣaṇa vinu,
āra nāhi bhūṣaṇera aṅta (2)

tīrtha jala pavitra guṇe, likhiyāche purāṇe,
se saba bhaktira prapañcana
vaiṣṇavera pādodaka, sama nahe ei saba,
yāte haya vāñchita pūraṇa (3)

vaiṣṇava saṅgete mana, ānandita anukṣaṇa,
sadā haya kṛṣṇa para saṅga
dīna narottama kānde, hiyā dhairya nāhi bāndhe
mora daśā kena haila bhaga (4)

The lotus feet of the saintly Vaisnavas are the greatest wealth in this world. O my dear brothers! Please listen attentively. One who takes shelter of the Vaisnava and worships Krsna, is never forsaken by Krsna. Others die without reason.

The water that has washed the feet of a Vaisnava gives divine strength to a person engaged in loving devotional service. Nothing else is more powerful than this. The dust of the feet of the Vaisnavas upon my head is the only decoration needed at the time of death.

The purifying qualities of the water of the holy places are men- tioned in the Purāņas and at every discourse on bhakti. However, the water from the feet of a Vaisnava cannot be compared with water from even the holy places. One’s desires are fulfilled by taking this water.

By associating with the Vaisnavas, one feels blissful discussing the topics of Lord Krsna. Becoming impatient due to forgetfulness of Krşņa, Narottama dāsa thus laments.

বৈষ্ণব-মহিমা।

ঠাকুর বৈষ্ণব পদ, অবনীর সুসম্পদ,
শুন ভাই হঞা একমন।
আশ্রয় লইয়া ভজে, তারে কৃষ্ণ নাহি ত্যজে,
আর সব মরে অকারণ।।

বৈষ্ণব চরণ রেণু, মস্তকে ভূষণ বিনু,
আর নাহি ভূষণের অন্ত।
বৈষ্ণব-চরণ জল, কৃষ্ণভক্তি দিতে বল,
আর কেহ নহে বলবন্ত।।

তীর্থজল পবিত্র গুণে, লিখিয়াছেন পুরাণে,
সে সব ভক্তির প্রপঞ্চন।
বৈষ্ণবের পাদোদক, সম নহে সেইসব,
যাতে হয় বাঞ্ছিত পূরণ।।

বৈষ্ণব সঙ্গেতে মন, আনন্দিত অনুক্ষণ,
সদা হয় কৃষ্ণ-পরসঙ্গ।
দীন নরোত্তম কান্দে, হিয়া ধৈর্য্য নাহি বান্ধে,
মোর দশা কেন হৈল ভঙ্গ।।

ठाकुर वैष्णव पद
(वैष्णव महिमा)

ठाकुर वैष्णव पद, अवनीर सुसम्पद,
शुन भाई, हञा एक मन।
आश्रय लड्या भजे, ता’रे कृष्ण नाहि त्यजे,
आर सब मरे अकारण ॥१ ॥

वैष्णव चरण जल, प्रेमभक्ति दिते बल,
आर केह नहे बलवन्त ।
वैष्णव-चरण-रेणु, मस्तके भूषण बिनु,
आर नाहि भूषणेर अंत ॥ २ ॥

तीर्थजल पवित्र-गुणे, लिखियाछे पुराणे,
से सब भक्तिर प्रवञ्चन।
वैष्णवेर पादोदक, सम नहे एड़ सब,
याते हय वांच्छित पूरण ॥ ३ ॥

वैष्णव-संगेते मन, आनन्दित अनुक्षण,
सदा हय कृष्ण परसंग ।
दीन नरोत्तम कान्दे , हिया धैर्य नाहि बान्धे,
मोर दशा केन हैल भंग ॥४ ॥

अरे भाई! एकाग्रचित्त होकर सुनो, वैष्णवों के चरणकमल ही इस जगत् की सुसम्पदा हैं। यदि उनका आश्रय लेकर कोई कृष्णभजन करता है, तो कृष्ण उसका त्याग नहीं करते। उनके आश्रय के बिना यदि कोई भजन-साधन करता है तो वह व्यर्थ ही मारा जाता है। उसका भजन-साधन निष्फल हो जाता है।

वैष्णवों का चरणजल प्रेमाभक्ति प्रदान करने में समर्थ है और कोई दूसरा उपाय शक्तिशाली नहीं है। वैष्णवों की चरणरज ही मस्तक का भूषण है, और सब अनन्त भूषण व्यर्थ हैं।

पुराणों में तीर्थों के जल को पवित्र बताया गया है, परन्तु भक्ति के लिए यह सब प्रवञ्चनामात्र है, क्योंकि वैष्णवों के चरणजल से तीर्थजल की कोई तुलना है ही नहीं। अतः इसका पान करनेमात्र से सारे मनोभीष्टों की पूर्ति होती है।

वैष्णवों के संग में सदैव कृष्णकथा की चर्चा होती है, जिससे मन सर्वदा आनन्दित रहता है। श्रील नरोत्तमदास ठाकुर रोते हुए कहते हैं- “ये स्थितियाँ क्यों नहीं प्राप्त हुई? मेरे धैर्य की सीमा टूट रही है।”

ठाकुर वैष्णव पद
(वैष्णव महिमा)

ठाकुर वैष्णव पद, अवनीर सुसम्पद,
शुन भाई, हञा एक मन।
आश्रय लड्या भजे, ता’रे कृष्ण नाहि त्यजे,
आर सब मरे अकारण ॥१ ॥

वैष्णव चरण जल, प्रेमभक्ति दिते बल,
आर केह नहे बलवन्त ।
वैष्णव-चरण-रेणु, मस्तके भूषण बिनु,
आर नाहि भूषणेर अंत ॥ २ ॥

तीर्थजल पवित्र-गुणे, लिखियाछे पुराणे,
से सब भक्तिर प्रवञ्चन।
वैष्णवेर पादोदक, सम नहे एड़ सब,
याते हय वांच्छित पूरण ॥ ३ ॥

वैष्णव-संगेते मन, आनन्दित अनुक्षण,
सदा हय कृष्ण परसंग ।
दीन नरोत्तम कान्दे, हिया धैर्य नाहि बान्धे,
मोर दशा केन हैल भंग ॥४ ॥

वैष्णव ठाकूरांचे श्रीचरण म्हणजे संपूर्ण पृथ्वीची संपदा आहे. हे बंधू! एकाग्र चित्ताने ऐका – जो वैष्णवांच्या आश्रयामध्ये भक्ती करतो, श्रीकृष्ण त्यांचा त्याग करणार नाहीत. इतर लोक तर व्यर्थच जीवन घालवित आहेत. 

वैष्णवांचे चरण-जल प्रेमभक्तीची शक्ती प्रदान करते. यासम कोणतीही गोष्ट इतकी शक्तिशाली नाही. वैष्णवांची चरण-धूळ हे मस्तकावरील अतुलनीय आभुषण आहे.

तीर्थजलाची पवित्रता तर सर्व पुराणांमध्ये लिखित आहे; परंतु ही तर भक्तीची प्रथमावस्था आहे. वैष्णवांच्या चरणजलासमान दुसरी कोणतीही पवित्र वस्तू या जगात नाही, कारण ती सर्व मनोभीष्टांची पूर्तता करणारी आहे. 

वैष्णवांच्या संगात मन सतत आनंदित राहते, कारण तेथे केवळ कृष्णलीलेचे वर्णन होत असते. श्रीनरोत्तम दास ठाकूर रुदन करीत म्हणतात, मी आता आणखी धीर धरू शकत नाही माझी ती स्थिती का भंग पावली?

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