Vrindavana Ramya Sthana

Song Name: Vrindavana Ramya Sthana
Official Name: Mathura-virohcita Darsana Lalasa Song 3-
((Devotee’s Yearning to see Mathura))
Vasanti Rasa –
(Amorous pastimes in the spring)
Author: Narottama Dasa Thakura
Book Name: Prarthana
Language: Bengali

vṛndāvana ramya-sthāna divya-cińtāmaṇi-dhāma
ratana-mandira manohara
abṛta kālindī-nīre rāja-haṁsa keli kare
tāhe śobhe kanaka-kamala (1)

tāra madhye hema-pīṭha aṣṭa-dale beṣṭita
aṣṭa-dale pradhāna nāyika
tāra madhye ratnāsane ba’si āchen dui-jane
śyāma-saṅge sundarī rādhikā (2) 

o-rūpa-lābaṇya-rāśi amiyā pariche khasi
hāsya-parihāsa-sambhāṣaṇe
narottama-dāsa kaya nitya-līlā sukha-maya
sadāi sphurūka mora mane (3)

The beautiful place known as Vrndāvana is a transcendental abode in the spiritual world and is made entirely of divine touch- stones. There are many beautiful temples made out of jewels, and swans known as rāja-hamsa play in the waters of the River Yamunā, which flows through that transcendental land. In the water of that divine river there is a beautiful golden lotus of a hundred petals.

In the midst of that lotus, there is a golden platform surrounded by eight petals. Situated upon those eight petals are the principal sakhīs, headed by Lalita and Viśākhā. On that golden platform, the Divine Couple sit upon a jewelled throne. In the company of Lord Śyāma sits the beautiful Rādhikā.

The beauty and sweetness of Śrī Rādhā and Govinda’s forms during Their talks, which are filled with smiles and laughter, is ema- nating showers of nectar. Narottama dāsa says: “May these eternal pastimes, filled with transcendental joy, be ever manifest in my heart.”

বৃন্দাবন রম্য-স্থান দিব্য চিন্তামণি ধাম
রতন মন্দির মনোহর
আবৃত কালিন্দী নীরে রাজহংস কেলি করে
তাহে শোভে কনক-কমল (১)

তার মধ্যে হেম-পীঠ অষ্ট-দলেতে বেষ্টিত
অষ্ট-দলে প্রধানা নায়িকা
তার মধ্যে রত্নাসনে বসিয়াছেন দুই জনে
শ্যাম সঙ্গে সুন্দরী রাধিকা (২)

ও রূপ লাবণ্য রাশি অমিয়া পডিছে খসি
হাস্য পরিহাস সম্ভাষণে
নরোত্তম দাস কয় নিত্য লীলা সুখময়
সদাই স্ফুরুক মোর মনে (৩)

मथुराविरहोचित दर्शन-लालसा,
(मथुरा-दर्शन करने की भक्त की तीव्र उत्कण्ठा)
वासंती-रास
(वसन्त ऋतु में रसिक लीलाएँ)

वृन्दावन रम्यस्थान, दिव्य चिन्तामणिधाम,
रतन-मन्दिर मनोहर।
आवृत कालिन्दी-नीरे, राजहंस केलि करे,
ताहे शोभे कनक-कमल ॥१॥

तार मध्ये हेमपीठ, अष्टदले वेष्टित,
अष्टदले प्रधान नायिका।
तार मध्ये रत्नासने, बसि ‘आछेन दुइजने,
श्याम-सङ्गे सुन्दरी राधिका ॥२॥

ओ रूप- लावण्यराशि, अमिय पड़िछे खसि’,
हास्य-परिहास-सम्भाषणे।
नरोत्तमदास कय, नित्यलीला सुखमय,
सदाइ स्फुरुक मोर मने ॥३॥

वृन्दावन नामक रम्य-स्थान अध्यात्मिक जगत् का एक दिव्य धाम है। वह दिव्य चिंतामणि रत्नों से बना हुआ है। वहाँ कई मनोहर रत्नों से बने हुए मंदिर हैं तथा वहाँ राजहंस यमुना के जल में क्रीड़ा करते हैं। यमुना के जल में शत पंखुडियों वाला एक सुवर्णकमल शोभायमान है।

उस कमल के मध्य में आठ पंखुडियों से घिरा हुआ एक स्वर्ण-पीठ है। उन अष्ट पंखुडियों पर ललिता एवं विशाखा के नेतृत्व में आठ प्रधान नायिकायें स्थित हैं। उसके बीच में स्वर्ण-पीठ पर युगलजोड़ी विराजमान है। श्यामसुन्दर के साथ राधिका सुंदरी बैठी हैं।

श्री श्री राधा-कृष्ण के हास्य-परिहास-सम्भाषण के समय उनके रूप लावण्य की राशि अमृत बरसा रही है। श्रील नरोत्तम दास ठाकुर कहते हैं “ये सुखमय नित्यलीलायें मेरे मन में सदा स्फुरित होती रहें।”

मथुराविरहोचित दर्शन-लालसा,
(मथुरा-दर्शन करण्यासाठी भक्ताची तीव्र उत्कण्ठा)
वासंती-रास
(वसन्त ऋतु मधील रसिक लीलाएँ)

वृन्दावन रम्यस्थान, दिव्य चिन्तामणिधाम,
रतन-मन्दिर मनोहर।
आवृत कालिन्दी-नीरे, राजहंस केलि करे,
ताहे शोभे कनक-कमल ॥१॥

तार मध्ये हेमपीठ, अष्टदले वेष्टित,
अष्टदले प्रधान नायिका।
तार मध्ये रत्नासने, बसि ‘आछेन दुइजने,
श्याम-सङ्गे सुन्दरी राधिका ॥२॥

ओ रूप- लावण्यराशि, अमिय पड़िछे खसि’,
हास्य-परिहास-सम्भाषणे।
नरोत्तमदास कय, नित्यलीला सुखमय,
सदाइ स्फुरुक मोर मने ॥३॥

१. दिव्य चिंतामणींनी युक्त वृंदावन नामक सुंदर रम्यस्थान आहे. तेथे मनोहर रत्नजडित मंदिरे असून त्या दिव्य धामातून वाहणाऱ्या यमुनाजलात सुंदर राजहंस विहार करीत आहेत. त्या सुंदर जळामध्ये एक अलौकिक सोनेरी शंभर पाकळ्यांचे कमळ आहे.

२. त्या कमळाच्या मध्यभागी सोनेरी आठ पाकळ्यांचे आणखी एक कमळ आहे. त्या आठ पाकळ्यांवर ललिता, विशाखासहित आठ प्रमुख सखी (इंदुलेखा, रंगदेवी, सुदेवी, चंपकलता, चित्रा, तुंगविद्या) विराजमान आहेत. मध्यभागी रत्नजडित सिंहासनावर हे दिव्य जोडपे आहे; श्यामसमवेत सुंदर राधिका शोभत आहे.

३. माधुर्य रसातील श्री राधा-गोविंदांचे हास्य-परिहास्यांनी युक्त संवाद आणि त्यांचे रूप इतके आकर्षक आहे की, त्यातून जणू अमृतधाराच वाहत आहे. नरोत्तम दास म्हणतात, “ही दिव्यानंदांनी परिपूर्ण शाश्वत लीला सदैव माझ्या हृदयात विराजमान राहो.”

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