Hari Hari Ara Ki Emana Dasa Haba 3

Song Name: Hari Hari Ara Ki Emana Dasa Haba 3
Official Name: Sadhaka Dehocita Sri Vrindavana Vasa Lalasa Song 1
Author: Narottama Dasa Thakura
Book Name: Prarthana
Language: Bengali

hari hari āra ki emana daśā haba
e bhava saṁsāra tyaji, parama ānande maji, 
āra kabe vrajabhūme jāba (1)

sukhamaya vṛndāvana, kabe habe daraśana,
se dhūli lāgibe kabe gāya
preme gadagada haiyā, rādhā-kṛṣṇa nāma laiyā,
kāṅdiyā beḍāba ubharāya (2)

nibhṛta nikuñje jāiyā, aṣṭāṅge praṇāma haiyā,
ḍākiba hā rādhā-nātha bali
kabe yamunāra tīre, paraśa kariba nīre,
kabe piba kara puṭe tuli (3)

āra kabe emana haba, śrī rāsa maṇḍale jāba,
kabe gaḍāgaḍi diba tāya
vaḿśīvaṭa chāyā pāiyā, parama ānanda haiyā,
paḍiyā rahiba tāra chāya (4)

kabe govardhana-giri, dekhiba nayana bhari,
kabe habe rādhā-kuṇḍe vāsa
bhramite bhramite kabe, e deha patana habe,
kahe dīna narottama dāsa (5)

O Lord Hari, when will that day come when I leave this material world and go to the land of Vraja, absorbed in transcendental bliss?

When will I smear my body with the dust of blissful Vrndāvana? I will wander about Vrndāvana chanting the names of Rādhā and Krşņa in a voice choked with ecstatic love.

Going to a solitary place at Nikuñja forest, I will offer my full obeisances and call out, “O Rādhānātha”! When will I go to the bank of the Yamuna and drink a palmful of water?

When will that day come that I enter Śrī Rāsāmandala and roll on the ground in ecstasy? When will I stay under the shade of Vamśīvața in complete transcendental bliss?

When will I see Govardhana Hill, my eyes brimming with tears, and when will I be able to live at Rādhā-kunda? When, after wan- dering around Vrndāvana in this way, will my body collapsed? Poor unfortunate Narottama dāsa thus laments.

Not Available.

साधक-देहोचित
श्रीवृन्दावन वास लालसा भजन १
(भक्त की वृन्दावन में रहने की तीव्र इच्छा)

हरि हरि ! आर कि एमन दशा ह’ब।
ए भव-संसार त्यजि, परम आनन्दे मजि,
आर कबे ब्रजभूमे जा’ब ॥१॥

सुखमय वृन्दावन, कबे ह’बे दरशन,
से धूलि लागिबे कबे गाय।
प्रेमे गदगद् हइया, राधाकृष्ण नाम लइया,
काँदिया बेड़ाब उभराय ॥२॥

निभृत निकुञ्जे जाइया, अष्टांगे प्रणाम हइया,
डाकिब हा राधानाथ! बलि’।
कबे यमुनार तीरे, परश करिब नीरे,
कबे पिब कर पुटे तुलि’ ॥३॥

आर कबे एमन ह’ब, श्री रासमण्डले जा’ब,
कबे गड़ागड़ि दिब ता’य।
बंशीवट-छाया पाइया, परम आनन्द 
हइया,
पड़िया रहिब ता’र छाय ॥४॥

कबे गोवर्धन-गिरि, देखिब नयन भरि’,
कबे ह’बे राधाकुण्ड वास।
भ्रमिते भ्रमिते कबे, ए देह पतन ह’बे,
कहे दीन नरोत्तमदास ॥५॥

हे भगवान् हरि! कब मेरी ऐसी स्थिति होगी, कि मैं इस भौतिक जगत् को त्यागकर, परम आनन्द में निमग्न होकर, ब्रजधाम में जाऊँगा?

कब उस सुखमय वृन्दावन का मुझे दर्शन होगा और कब उस ब्रजरज से मेरा सारा शरीर विभूषित होगा? कब मैं भगवत्प्रेम में गद्गद होकर ‘राधाकृष्ण’ के नामों का उच्चारण करूँगा और उच्चस्वर में रोते हुए वृंदावन में भ्रमण करूँगा?

एकान्त निकुंज स्थान में जाकर मैं अष्टांग प्रणाम करके उच्च स्वर में पुकारूँगा “हे राधानाथ!” कब मैं यमुना के किनारे जाकर उस पवित्र जल का स्पर्श करूँगा और अंजलि भरकर पानी पिऊँगा?

कब वह दिन आयेगा कि मैं रासमण्डल में जाकर वहाँ की भूमि पर लोट-पोट हो जाऊँगा? कब मैं बंशीवट की छाया में परम आनन्दपूर्वक पड़ा रहूँगा?

कब मैं नेत्र भरकर श्रीगिरिराज के दर्शन करूँगा? कब मेरा राधाकुण्ड में वास होगा? कब मैं वृन्दावन का भ्रमण करते-करते शरीर का त्याग करूँगा? इस प्रकार श्रील नरोत्तमदास दीनतापूर्वक प्रार्थना करते हैं।

साधक-देहोचित
श्रीवृन्दावन वास लालसा भजन १
(श्रीवृंदावन धामात राहण्याची भक्ताची अभिलाषा)

हरि हरि ! आर कि एमन दशा ह’ब।
ए भव-संसार त्यजि, परम आनन्दे मजि,
आर कबे ब्रजभूमे जा’ब ॥१॥

सुखमय वृन्दावन, कबे ह’बे दरशन,
से धूलि लागिबे कबे गाय।
प्रेमे गदगद् हइया, राधाकृष्ण नाम लइया,
काँदिया बेड़ाब उभराय ॥२॥

निभृत निकुञ्जे जाइया, अष्टांगे प्रणाम हइया,
डाकिब हा राधानाथ! बलि’।
कबे यमुनार तीरे, परश करिब नीरे,
कबे पिब कर पुटे तुलि’ ॥३॥

आर कबे एमन ह’ब, श्री रासमण्डले जा’ब,
कबे गड़ागड़ि दिब ता’य।
बंशीवट-छाया पाइया, परम आनन्द 
हइया,
पड़िया रहिब ता’र छाय ॥४॥

कबे गोवर्धन-गिरि, देखिब नयन भरि’,
कबे ह’बे राधाकुण्ड वास।
भ्रमिते भ्रमिते कबे, ए देह पतन ह’बे,
कहे दीन नरोत्तमदास ॥५॥

१. हे प्रिय भगवंता! कधी मी ही पात्रता प्राप्त करू शकेन? कधी मी हे भौतिक जग सोडून, दिव्यानंदात मग्न होऊन, व्रजधामास परत येईन ?

२. कधी मी आध्यात्मिक आनंददायक वृंदावन धामाचे दर्शन घेईन ? कधी त्या धुळीमध्ये माझे शरीर माखून जाईल? भगवद् प्रेमाच्या आवाजात राधाकृष्णांचे नामगान करीन आणि मोठ्याने रुदन करीत वृंदावनात सर्वत्र फिरेन ?

३. एकांत अशा निकुंज वनात जाऊन, तेथे दंडवत घालून मी नामजप करीन “ओ! राधानाथ” असा कधी मी यमुनातीरी जाऊन त्या पाण्याचा स्पर्श करीन आणि पूर्ण समाधान होईपर्यंत ते जल प्राशन करीन?

४. कधी असे होईल का? की मी रासमंडलामध्ये प्रवेश करून तेथील जमिनीवर लोळण घेईन? वंशीवटाच्या छायेखाली आनंदाने उभा राहीन?

५. कधी पूर्ण संतुष्ट होईपर्यंत गिरि-गोवर्धनाचे दर्शन घेईन आणि राधाकुंडामध्ये राहण्यासाठी पात्र बनेन? हा दीनहीन नरोत्तमदास म्हणतो “कधी मी अशाप्रकारे भ्रमण करीत माझे शरीर त्याग करेन?”

Additional Info

other version
(2) se dhūli mākhiba kabe gāya
(3) nibhṛta nikuñje jāiyā, aṣṭāṅga praṇata haiyā

Resources

English

Buy $1

Bengali

Download PDF

Buy Tickets $1

Hindi

Download PDF

Buy Tickets $1

Links

Audios

Videos

Leave A Comment

Scroll to Top