Lokanatha Prabhu Tumi Daya Kara More

Song Name: Lokanatha Prabhu Tumi Doya Koro More
Official Name: Lalasa Song 6
Author: Narottama Dasa Thakura
Book Name: Prarthana
Language: Bengali

lokanātha prabhu tumi dayā kara more;
rādhā-kṛṣṇa caraṇe yena sadā citte sphure (1)

tomāra sahita thāki sakhīra sahite;
ei ta vāsanā mora sadā uṭhe citte (2)

sakhī-gaṇa jyeṣṭha jeṅho tāṅhāra caraṇe;
more samarpibe kabe sevāra kāraṇe (3)

tabe se haibe mora vāñcchita pūraṇa;
ānande seviba doṅhāra yugala caraṇa (4)

śrī-rūpa-mañjari sakhi kṛpā-dṛṣṭye cāiyā;
tāpī narottame siñca sevāmṛta diyā (5)

O my lord Lokanātha, please have mercy on me, so that the lotus feet of Rādhā and Krşņa will eternally manifest in my mind.

This desire to live with you along with the sakhīs, always comes up in my mind.

When will you kindly place me at the lotus feet of the senior-most sakhī for rendering loving service?

My desires will then be fulfilled and I will engage happily in the service of the lotus feet of Rādhā and Krşņa.

O Śrī Rūpa Mañjarī sakhī, please caste your glance of mercy upon me. Please deliver this distressed Narottama dāsa by engaging him in the nectarean service of the Lord.

লোকনাথ! প্রভু তুমি দয়া কর মোরে;
রাধা-কৃষ্ণ চরণে যেন সদা চিত্ত স্ফুরে (১)

তোমার সহিতে থাকি সখীর সহিতে;
এই তো বাসনা মোর সদা উঠে চিতে (২)

সখীগণ জ্যেষ্ঠ যেঁহ তাঁহার চরণে;
মোরে সমর্পিবে কবে সেবার কারণে (৩)

তবে সে হৈবে মোর বাঞ্ছিত পূরণ;
আনন্দে সেবিব দোঁহার যুগল চরণ (৪)

শ্রী রূপ মঞ্জরি! সখি! কৃপা-দৃষ্ট্যে চাইয়া;
তাপী নরোত্তম সিঞ্চো সেবামৃত দিয়া (৫)

लोकनाथ-प्रभु! तुमि दया कर मोरे।
राधाकृष्ण-चरण येन सदा चित्ते स्फुरे ॥१॥

तोमार सहित थाकि’ सखीर सहिते।
एइ त’ वासना मोर सदा उठे चित्ते ॥२॥

सखीगण ज्येष्ठ जेंहो, ताँहार चरणे।
मोरे समर्पिबे कबे सेवार कारणे ॥३॥

तबे से हइबे मोर वाच्छित पूरण।
आनन्दे सेविब दोंहार युगल चरण ॥४॥

श्रीरूपमञ्जरी सखि कृपादृष्टे चाइया।
तापी नरोत्तमे सिञ्च सेवामृत दिया ॥५॥

हे लोकनाथ गोस्वामी प्रभु! आप मुझपर दया कीजिए, जिससे श्रीश्री राधा-कृष्ण के चरणकमल सदा मेरे हृदय में स्फुरित होते रहें।

आपके आनुगत्य में रहकर hat pi सखियों के साथ सदा रहूँ, यही इच्छा मेरे हृदय में सदैव उठा करती है।

कब, आप मुझे वरिष्ठ सखियों के चरणकमलों की प्रेममयी सेवा करने हेतु समर्पित करेंगे?

तभी मेरी मनोवाञ्छा पूर्ण होगी और मैं प्रसन्नतापूर्वक श्रीश्री राधा-कृष्ण की सेवा करूँगा।

श्रील नरोत्तमदास ठाकुर कहते हैं, “हे रूपमञ्जरी सखी! कृपया अपनी कृपादृष्टि मुझ पर डालिये एवं इस दीन का उद्धार करके भगवत् सेवामृत में नियुक्त रखिये।”

लोकनाथ-प्रभु! तुमि दया कर मोरे।
राधाकृष्ण-चरण येन सदा चित्ते स्फुरे ॥१॥

तोमार सहित थाकि’ सखीर सहिते।
एइ त’ वासना मोर सदा उठे चित्ते ॥२॥

सखीगण ज्येष्ठ जेंहो, ताँहार चरणे।
मोरे समर्पिबे कबे सेवार कारणे ॥३॥

तबे से हइबे मोर वाच्छित पूरण।
आनन्दे सेविब दोंहार युगल चरण ॥४॥

श्रीरूपमञ्जरी सखि कृपादृष्टे चाइया।
तापी नरोत्तमे सिञ्च सेवामृत दिया ॥५॥

१. हे प्रभू, लोकनाथ! माझ्यावर कृपा करा, जेणेकरून राधाकृष्णांचे चरणकमळ शाश्वतपणे माझ्या हृदयात प्रकट होऊ दे.

२. सखींसोबत तुमच्या बरोबर राहण्याची इच्छा सतत माझ्या मनात येते.

३. प्रेममयी सेवा करण्यासाठी श्रेष्ठ गोपीच्या (श्रीमती राधाराणी) चरणकमळांशी केव्हा तुम्ही मला ठेवणार?

४. तेव्हा माझ्या सर्व इच्छा पूर्ण होतील व मी आनंदाने राधा-कृष्णांच्या चरणकमळांच्या सेवेत मग्न होईन.

५. हे रूपमंजरी सखी, तुमची कृपादृष्टी माझ्यावर असू द्या. कृपया या दीन नरोत्तम दासाला भगवंतांच्या सेवामृतामध्ये रत करा.

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